फूलगोभी की खेती कैसे करें | How to cultivate cauliflower

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Group Join Now

फूलगोभी की खेती / How to cultivate cauliflower

आम जानकारी
गोभी वर्गीय सब्जियों में फूलगोभी का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। इसकी खेती मुख्य रूप से श्वेत, अविकसित वाह गठे हुए पुष्प पुंज के उत्पादन हेतु की जाती है इसका उपयोग सब्जी सूप आचार सलाद बिरयानी पकोड़ा इत्यादि बनाने में किया जाता है। साथ ही फुलकोबी पाचन शक्ति को बढ़ाने में अत्यंत लाभदायक है। फूलगोभी मैं प्रोटीन कैल्शियम और विटामिन ए तथा सी भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
फूलगोभी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
फूलगोभी की खेती के लिए ठंडा और आदर जलवायु सर्वोत्तम होती है अधिक ठंडा और पाला का प्रकोप होने से फूलों को अधिक नुकसान होता है। फूल वृद्धि के समय तापमान अनुकूल से कम रहने पर फूलों का साइज छोटा हो जाता है। अच्छी फसल के लिए 15 से 20 डिग्री सेल्सियस तापमान होना चाहिए।

फूलगोभी की खेती के लिए भूमि

फूलगोभी की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है परंतु वहां जल निकासी की सुविधा होनी चाहिए दोमट या बलुई दोमट मिट्टी जिसमें जीवाश्म की प्रचुर मात्रा उपलब्ध हो या मिट्टी काफी उपयुक्त होता है।
फूलगोभी की फसल के लिए खेत की तैयारी कैसे करें ?
फूलगोभी की खेत की तैयारी के लिए तीन से चार बार जूताई की जाती है, 1 st जुताई मिट्टी पलटने वाली हल से तथा शेष कल्टीवेटर से करनी चाहिए।
प्रत्येक जुदाई के बाद खेत में पाटा लगाना चाहिए जिससे मिट्टी भोजपुरी एवं खेत समतल बन जाता है। खेत तैयार होने के बाद सुविधा अनुसार यारियां बना लें जिसमें सिंचाई एवं गुड़ाई की सुविधा हो और जल निकासी की सुविधा हो।
फूलगोभी की खेती के लिए उन्नत किस्म का चयन 
समय के आधार पर फूल गोभी को विभिन्न वर्गों में बांटा गया है इसकी स्थानीय तथा उन्नत दोनों प्रकार की किस्में उगाई जाती है इन किस्मों पर तापमान एवं प्रकाश अवधि का बहुत प्रभाव पड़ता है। इसकी उचित किस्म का चुनाव और उपयुक्त समय पर बुराई करना अत्यंत आवश्यक है। यदि अगेती किस्म को देर से और पीछे की किस्म को जल्दी उगाया जाएगा तो दोनों में पौधे की वृद्धि अधिक होगी लेकिन फुल छोटा हो जाएगा और फूल देर से लगेंगे इस आधार पर फूल गोभी को तीन भागों में बांटा गया है।
पहला अगेती
दूसरा मध्यम
तीसरा पिछेती

फुलकोबी की अगेती किस्में
अर्ली कुमारी, पुसा कतिकी, पूसा दीपाली, समर किंग, पावस, इंप्रुबेड जापानी, हाजीपुर, आगत एवं सबौर अग्रिम अगेती किस में है।

फूल गोभी की मध्यम किस्में

पंत शुभ्रा , पूसा शुभ्रा, पूसा सिंथेटिक, पूसा स्नोबल, के.-1, आगहनि, सैगनी, हिसार नं. 1 मध्यम किस्म की फुलकोबी है।

फूल गोभी की पिछेती की किस्में।
पूसा स्नोबल 1, पूसा स्नोबल 2, पूसा स्नोबल 16, एंव माघी है। संकर किस्मों में हिमानी स्वाति तथा समर किंग से अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।

How to cultivate cauliflower
फूलगोभी के खेती लिए बीज दर
अगेती किस्मों की बीज दर 600 से 700 ग्राम और मध्यम एवं पिछडे की किस्म की बीज दर 350 से 400 ग्राम प्रति हेक्टेयर है।
फूलगोभी के खेती लिए बीज दर
अगेती किस्मों की बीज दर 600 से 700 ग्राम और मध्यम एवं पिछडे की किस्म की बीज दर 350 से 400 ग्राम प्रति हेक्टेयर है।
फूलगोभी की बीज बुवाई का समय
अगेती किस्मों की बुवाई अगस्त के अंतिम सप्ताह से 15 दिसंबर तक कर देना चाहिए। मध्यम और पीछे की किस्मों की बुवाई सितंबर के मध्य से पूरे अक्टूबर तक करें।
फूलगोभी की खेती के लिए पौधा साला प्रबंधक
फूलगोभी के बीज को सीधे खेत में नहीं बोलना चाहिए। बीज को पहले पौधा शाला में बुवाई करके पौधा तैयार करें। एक हेक्टेयर क्षेत्र में प्रति रोपण के लिए लगभग 70 से 100 वर्ग मीटर में पौधा उगाना पर्याप्त होगा, पौधे को खेत में प्रतिरूपण करने से पहले 1 ग्राम स्टेप्टोसाइकिलइन का 8 लीटर पानी में घोलकर 30 मिनट तक डूबा कर उपचारित कर ले उपचारित पौधे को ही खेत में लगाना चाहिए।
 फूलगोभी की खेती के लिए पौधारोपण
अगेती फूलगोभी के पौधे की बढ़वार अधिक नहीं होती अतः इस का रोपन कतार से कतार 40 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे 30 सेंटीमीटर की दूरी पर करना चाहिए। परंतु मध्यम एवं पीछे की किस्मत में कतार से कतार 45 से 60 सेंटीमीटर एवं पौधे से पौधे की दूरी 45 सेंटीमीटर रखनी चाहिए।
 फूलगोभी की खेती के लिए सिंचाई प्रबंधन
फूलगोभी की पौधे के अच्छे बढ़वार के लिए पर्याप्त मात्रा में नमी होना अत्यंत आवश्यक है सितंबर के बाद 10 से 15 दिनों के अंतराल पर आवश्यकता अनुसार सिंचाई करते रहना चाहिए एवं गर्मी के दिनों में 5 से 7 दिन पर सिंचाई करते रहना चाहिए। तथा आवश्यकता अनुसार नमी कम होने पर सिंचाई करें।
फूलगोभी की खेती में खरपतवार को कैसे नियंत्रित करें।
फूलगोभी की पौधे की जड़ों के समुचित विकास के लिए निकाय गुड़ाई अत्यंत आवश्यक है।इस क्रिया से जोड़ों के आसपास की मिट्टी ढीली हो जाती है और हवा का आवागमन अच्छी तरह से होता है जिसका अनुकूल प्रभाव उपज पर पड़ता है परंतु व्यवसाय के रूप में खेती के लिए खरपतवार नासी दवा स्टांप 3 लीटर को 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव रोपण के पहले काफी लाभदायक होता है।

How to cultivate cauliflower

फूलगोभी की खेती में पोषक तत्व प्रबंधन
फूलगोभी की अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए खेत में पर्याप्त मात्रा में जीवाश्म का होना अत्यंत आवश्यक है खेत में 20 से 25 टन सड़ी हुई गोबर की खाद या कंपोस्ट रोपाई के 3 से 4 सप्ताह पूर्व अच्छी तरह मिला देना चाहिए इसके अतिरिक्त 120 किलोग्राम नाइट्रोजन 60 किलोग्राम फास्फोरस एवं 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए। नाइट्रोजन की एक-तिहाई मात्रा एवं फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा अंतिम जुताई तथा प्रतिरूपण से पहले खेत में अच्छी तरह मिला देना चाहिए तथा शेष आधी नाइट्रोजन की मात्रा दो बराबर भागों में बांट कर खड़ी फसल में 30 से 45 दिन बाद उपनिवेशन के रूप में देना चाहिए।
सूक्ष्म पोषक तत्व का उपयोग
फूलगोभी  फसल में सूक्ष्म तत्व का बहुत बड़ा योगदान होता है इसकी कमी से कुछ विकृतियां उत्पन्न हो जाती है जिसमें बचाव हेतु निम्न सुसु पोषक तत्व का उपयोग करें।
फूलगोभी में होने वाले रोग
बोरान

बोरान की कमी से फूल गोभी को खाने वाला भाग छोटा रह जाता है इसकी कमी से शुरू में तो फूल पर छोटे-छोटे दाग या धब्बे दिखाई पड़ने लगते हैं तथा बाद में पूरा का पूरा फुल हल्का गुलाबी पीला या भूरे रंग का हो जाता है जो खाने में कड़वा लगता है फूल को भी एवं फूल का तलाक हो खुला हो जाता है और फट जाता है इसमें फूलगोभी की उपज तथा मांग दोनों में कमी आ जाती है इसकी रोकथाम के लिए बोरेक्स 10 से 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से एवं अन्य उर्वरक के साथ खेत में डालना चाहिए।

मॉलीब्लेडिनम
इस सूक्ष्म तत्व की कमी से फूल गोभी का रंग गहरा हरा हो जाता है और किनारे से सफेद होने लगती है जो बाद में मुरझा कर गिर जाती है। इसके बचाव के लिए एक से डेढ़ किलोग्राम मॉलीब्लेडिनम प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में मिला कर देना चाहिए। इससे फुलगोबी का खाने वाला भाग आधार कार्ड पूर्ण आकृति का ग्रहण कर ले एवं रंग स्वेता एवं चमकदार हो जाए तो पौधे की कटाई कर लेना चाहिए देर से कटाई करने पर रंग पीला पड़ने लगता है और फूल फटने लगते हैं जिससे बाजार मूल्य घट जाता है।

डायमंड बैक मौथ

हरे रंग के व्यस्त गीत के पीठ पर सफेद रंग की हीरे की आकृति बनी होती है। मादा केक पतियों पर एक-एक कर या समूह में अंडे देती है। एक मादा लगभग 365 अंडे दे सकती है। यह एक जगह छेद करती है। और वहां पतियों को खाती है जिससे आक्रांत भाग चलनी नुमा दिखता है परियों की अनुपस्थिति में यह तेजी से फैलता है इसके नियंत्रण हेतु निमसिड कार्नेल एक्सप्रेस 5% का फसल पर छिड़काव लाभप्रद होता है। प्रकाश पर डायमंडबैक मौत का व्यस्त अधिक आकर्षित होता है अतः परजीवी राय को ग्रामा एवं ड्राराडोनर्स होता है। Clorpirifos 20 ई. सी का 2.5ml प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

कैबेज सेमिलूपर
व्यास का गीत के अगले पंखों पर सुनहरी रंग का धब्बा होता है मादा की पत्तियों की निचली सतह पर अंडे देती है पिल्लू चलते समय अर्ध लूप बनता है। पिल्लू पतियों को काटकर खाता है तथा मात्र मध्यम नारी को छोड़ देता है इसके नियंत्रण हेतु नीम सीड कार्नेल एक्सट्रैक्ट 5% का स्पीकर के साथ पतियों पर छिड़काव करें। ब्लू बेरिया बेसियाना 1 ग्राम को प्रति लीटर पानी में किसी स्पीकर के साथ मिलाकर संध्या के समय छिड़काव करें। साइपरमैथरीन 10 इ.सी. का 1 मिले जब प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

आरा मक्खी

व्यस्त गेट नारंगी पीले रंग का होता है मादा केक पतियों के किनारे पर अंडे देती है जिससे 3 से 5 दिन ब्लू निकल आते हैं यह बड़ी तेजी से पतियों को खाते हैं इसके नियंत्रण हेतु खेत की सिंचाई देने से पहले इस कीट का प्रकोप कम हो जाता है संतुलित मात्रा में उर्वरक का प्रयोग करें।
शिशु को हाथ से चुनकर नष्ट कर देना चाहिए नियम आधारित जैविक कीटनाशक का 5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी किधर से घोल बनाकर छिड़काव करें। मिथाइल पारा में ध्यान दो प्रतिशत धूल या माला ध्यान 5% धोलका 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।

पत्र धब्बा रोग

इसमें पतियों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे बनते हैं इन दावों के अंदर कंसेंट रिंग रिंग बना होता है। धब्बे अधिक होने और बढ़ने पर पत्तियां झुलस जाती है इसके नियंत्रण के लिए बीज उपचारित कर के ही बीच स्थली में गिरा में बीज एवं बीज स्थली को ट्राइकोडरमा से उपचारित करें। मैनकोज़ेब 75 घुलनशील चूर्ण 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें।

डेपिंग ऑफ
इस रोग के कारण बीज का अंकुरण कम होता है बीज का जड़ एवं थाना भागसर जाता है। नए पौधे के तने का भाग गलने एवं नव अंकुरित पौधे गिर जाते हैं एवं पौधा धीरे-धीरे सूख जाता है इसके नियंत्रण के लिए बीज को उपचारित कर बीज स्थली में गिराना चाहिए खेत में जल निकास का उत्तम पर बंद करें कार गोल्ड जिम 51 सिम चूर्ण का 1 ग्राम प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर बिजली में छिड़काव करें।

जीवाणु सड़न

इस रोग में पतियों के किनारे से अंग्रेजी के प्रकार का धब्बा बनता है जिसका रंग पुआल जैसा होता है अधिकतम आक्रमण की स्थिति में पतियों के ढंडल को तोड़ने पर कॉल आना से स्पष्ट देखा जा सकता है तीव्र प्रकोप की स्थिति में गोभी के फूल भी सड़ने लगते हैं इसके नियंत्रण के लिए पौधे के आक्रांत भाग को छोड़कर हटा दें इसके बाद स्ट्राइक के लिए इनका 1 ग्राम प्रति 4 किलोग्राम बीच में मिलाकर बीज उपचार करें। Streptocycline 50 ग्राम एवं कॉपर ऑक्सिक्लोराइड 2.5 किलोग्राम का घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।

फूलगोभी की पौधा संरक्षण
फूलगोभी में कीटो एवं बीमारियों का काफी प्रकोप पाया जाता है जिसके नियंत्रण के लिए नियम उपाय किया जा सकता है जो लाभकारी है।
फूलगोभी की उपज
आगत किस्मों में से 125 से 200 क्विंटल तथा मध्यम एवं पिछड़ा किस्म में 200 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होता है।

How to cultivate cauliflower

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Group Join Now
फूलगोभी की खेती कैसे करें How to cultivate cauliflower

फूलगोभी की खेती कैसे करें How to cultivate cauliflower

 

 

 

 

Updated: 11/12/2022 — 9:28 AM

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *